{1} بِسْمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحْمَـٰنِ ٱلرَّحِيمِ لَآ أُقْسِمُ بِهَـٰذَا ٱلْبَلَدِ
मुझे इस शहर (मक्का) की कसम
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{2} وَأَنتَ حِلٌّۢ بِهَـٰذَا ٱلْبَلَدِ
और तुम इसी शहर में तो रहते हो
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{3} وَوَالِدٍۢ وَمَا وَلَدَ
और (तुम्हारे) बाप (आदम) और उसकी औलाद की क़सम
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{4} لَقَدْ خَلَقْنَا ٱلْإِنسَـٰنَ فِى كَبَدٍ
हमने इन्सान को मशक्क़त में (रहने वाला) पैदा किया है
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{5} أَيَحْسَبُ أَن لَّن يَقْدِرَ عَلَيْهِ أَحَدٌۭ
क्या वह ये समझता है कि उस पर कोई काबू न पा सकेगा
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{6} يَقُولُ أَهْلَكْتُ مَالًۭا لُّبَدًا
वह कहता है कि मैने अलग़ारों माल उड़ा दिया
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{7} أَيَحْسَبُ أَن لَّمْ يَرَهُۥٓ أَحَدٌ
क्या वह ये ख्याल रखता है कि उसको किसी ने देखा ही नहीं
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{8} أَلَمْ نَجْعَل لَّهُۥ عَيْنَيْنِ
क्या हमने उसे दोनों ऑंखें और ज़बान
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{9} وَلِسَانًۭا وَشَفَتَيْنِ
और दोनों लब नहीं दिए (ज़रूर दिए)
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{10} وَهَدَيْنَـٰهُ ٱلنَّجْدَيْنِ
और उसको (अच्छी बुरी) दोनों राहें भी दिखा दीं
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{11} فَلَا ٱقْتَحَمَ ٱلْعَقَبَةَ
फिर वह घाटी पर से होकर (क्यों) नहीं गुज़रा
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{12} وَمَآ أَدْرَىٰكَ مَا ٱلْعَقَبَةُ
और तुमको क्या मालूम कि घाटी क्या है
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{13} فَكُّ رَقَبَةٍ
किसी (की) गर्दन का (गुलामी या कर्ज से) छुड़ाना
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{14} أَوْ إِطْعَـٰمٌۭ فِى يَوْمٍۢ ذِى مَسْغَبَةٍۢ
या भूख के दिन रिश्तेदार यतीम या ख़ाकसार
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{15} يَتِيمًۭا ذَا مَقْرَبَةٍ
मोहताज को
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{16} أَوْ مِسْكِينًۭا ذَا مَتْرَبَةٍۢ
खाना खिलाना
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{17} ثُمَّ كَانَ مِنَ ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ وَتَوَاصَوْا۟ بِٱلصَّبْرِ وَتَوَاصَوْا۟ بِٱلْمَرْحَمَةِ
फिर तो उन लोगों में (शामिल) हो जाता जो ईमान लाए और सब्र की नसीहत और तरस खाने की वसीयत करते रहे
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{18} أُو۟لَـٰٓئِكَ أَصْحَـٰبُ ٱلْمَيْمَنَةِ
यही लोग ख़ुश नसीब हैं
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{19} وَٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ بِـَٔايَـٰتِنَا هُمْ أَصْحَـٰبُ ٱلْمَشْـَٔمَةِ
और जिन लोगों ने हमारी आयतों से इन्कार किया है यही लोग बदबख्त हैं
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{20} عَلَيْهِمْ نَارٌۭ مُّؤْصَدَةٌۢ
कि उनको आग में डाल कर हर तरफ से बन्द कर दिया जाएगा
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