{1} بِسْمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحْمَـٰنِ ٱلرَّحِيمِ عَبَسَ وَتَوَلَّىٰٓ
वह अपनी बात पर चीं ब जबीं हो गया
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{2} أَن جَآءَهُ ٱلْأَعْمَىٰ
और मुँह फेर बैठा कि उसके पास नाबीना आ गया
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{3} وَمَا يُدْرِيكَ لَعَلَّهُۥ يَزَّكَّىٰٓ
और तुमको क्या मालूम यायद वह (तालीम से) पाकीज़गी हासिल करता
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{4} أَوْ يَذَّكَّرُ فَتَنفَعَهُ ٱلذِّكْرَىٰٓ
या वह नसीहत सुनता तो नसीहत उसके काम आती
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{5} أَمَّا مَنِ ٱسْتَغْنَىٰ
तो जो कुछ परवाह नहीं करता
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{6} فَأَنتَ لَهُۥ تَصَدَّىٰ
उसके तो तुम दरपै हो जाते हो हालॉकि अगर वह न सुधरे
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{7} وَمَا عَلَيْكَ أَلَّا يَزَّكَّىٰ
तो तुम ज़िम्मेदार नहीं
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{8} وَأَمَّا مَن جَآءَكَ يَسْعَىٰ
और जो तुम्हारे पास लपकता हुआ आता है
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{9} وَهُوَ يَخْشَىٰ
और (ख़ुदा से) डरता है
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{10} فَأَنتَ عَنْهُ تَلَهَّىٰ
तो तुम उससे बेरूख़ी करते हो
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{11} كَلَّآ إِنَّهَا تَذْكِرَةٌۭ
देखो ये (क़ुरान) तो सरासर नसीहत है
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{12} فَمَن شَآءَ ذَكَرَهُۥ
तो जो चाहे इसे याद रखे
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{13} فِى صُحُفٍۢ مُّكَرَّمَةٍۢ
(लौहे महफूज़ के) बहुत मोअज़ज़िज औराक़ में (लिखा हुआ) है
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{14} مَّرْفُوعَةٍۢ مُّطَهَّرَةٍۭ
बुलन्द मरतबा और पाक हैं
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{15} بِأَيْدِى سَفَرَةٍۢ
(ऐसे) लिखने वालों के हाथों में है
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{16} كِرَامٍۭ بَرَرَةٍۢ
जो बुज़ुर्ग नेकोकार हैं
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{17} قُتِلَ ٱلْإِنسَـٰنُ مَآ أَكْفَرَهُۥ
इन्सान हलाक हो जाए वह क्या कैसा नाशुक्रा है
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{18} مِنْ أَىِّ شَىْءٍ خَلَقَهُۥ
(ख़ुदा ने) उसे किस चीज़ से पैदा किया
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{19} مِن نُّطْفَةٍ خَلَقَهُۥ فَقَدَّرَهُۥ
नुत्फे से उसे पैदा किया फिर उसका अन्दाज़ा मुक़र्रर किया
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{20} ثُمَّ ٱلسَّبِيلَ يَسَّرَهُۥ
फिर उसका रास्ता आसान कर दिया
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{21} ثُمَّ أَمَاتَهُۥ فَأَقْبَرَهُۥ
फिर उसे मौत दी फिर उसे कब्र में दफ़न कराया
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{22} ثُمَّ إِذَا شَآءَ أَنشَرَهُۥ
फिर जब चाहेगा उठा खड़ा करेगा
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{23} كَلَّا لَمَّا يَقْضِ مَآ أَمَرَهُۥ
सच तो यह है कि ख़ुदा ने जो हुक्म उसे दिया उसने उसको पूरा न किया
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{24} فَلْيَنظُرِ ٱلْإِنسَـٰنُ إِلَىٰ طَعَامِهِۦٓ
तो इन्सान को अपने घाटे ही तरफ ग़ौर करना चाहिए
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{25} أَنَّا صَبَبْنَا ٱلْمَآءَ صَبًّۭا
कि हम ही ने (बादल) से पानी बरसाया
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{26} ثُمَّ شَقَقْنَا ٱلْأَرْضَ شَقًّۭا
फिर हम ही ने ज़मीन (दरख्त उगाकर) चीरी फाड़ी
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{27} فَأَنۢبَتْنَا فِيهَا حَبًّۭا
फिर हमने उसमें अनाज उगाया
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{28} وَعِنَبًۭا وَقَضْبًۭا
और अंगूर और तरकारियाँ
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{29} وَزَيْتُونًۭا وَنَخْلًۭا
और ज़ैतून और खजूरें
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{30} وَحَدَآئِقَ غُلْبًۭا
और घने घने बाग़ और मेवे
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{31} وَفَـٰكِهَةًۭ وَأَبًّۭا
और चारा (ये सब कुछ) तुम्हारे और तुम्हारे
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{32} مَّتَـٰعًۭا لَّكُمْ وَلِأَنْعَـٰمِكُمْ
चारपायों के फायदे के लिए (बनाया)
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{33} فَإِذَا جَآءَتِ ٱلصَّآخَّةُ
तो जब कानों के परदे फाड़ने वाली (क़यामत) आ मौजूद होगी
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{34} يَوْمَ يَفِرُّ ٱلْمَرْءُ مِنْ أَخِيهِ
उस दिन आदमी अपने भाई
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{35} وَأُمِّهِۦ وَأَبِيهِ
और अपनी माँ और अपने बाप
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{36} وَصَـٰحِبَتِهِۦ وَبَنِيهِ
और अपने लड़के बालों से भागेगा
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{37} لِكُلِّ ٱمْرِئٍۢ مِّنْهُمْ يَوْمَئِذٍۢ شَأْنٌۭ يُغْنِيهِ
उस दिन हर शख़्श (अपनी नजात की) ऐसी फ़िक्र में होगा जो उसके (मशग़ूल होने के) लिए काफ़ी हों
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{38} وُجُوهٌۭ يَوْمَئِذٍۢ مُّسْفِرَةٌۭ
बहुत से चेहरे तो उस दिन चमकते होंगे
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{39} ضَاحِكَةٌۭ مُّسْتَبْشِرَةٌۭ
ख़न्दाँ शांदाँ (यही नेको कार हैं)
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{40} وَوُجُوهٌۭ يَوْمَئِذٍ عَلَيْهَا غَبَرَةٌۭ
और बहुत से चेहरे ऐसे होंगे जिन पर गर्द पड़ी होगी
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{41} تَرْهَقُهَا قَتَرَةٌ
उस पर सियाही छाई हुई होगी
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{42} أُو۟لَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلْكَفَرَةُ ٱلْفَجَرَةُ
यही कुफ्फ़ार बदकार हैं
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