Tafseer Translation

{1} بِسْمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحْمَـٰنِ ٱلرَّحِيمِ طسٓ ۚ تِلْكَ ءَايَـٰتُ ٱلْقُرْءَانِ وَكِتَابٍۢ مُّبِينٍ

ता सीन ये क़ुरान वाजेए व रौशन किताब की आयतें है

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{2} هُدًۭى وَبُشْرَىٰ لِلْمُؤْمِنِينَ

(ये) उन ईमानदारों के लिए (अज़सरतापा) हिदायत और (जन्नत की) ख़ुशखबरी है

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{3} ٱلَّذِينَ يُقِيمُونَ ٱلصَّلَوٰةَ وَيُؤْتُونَ ٱلزَّكَوٰةَ وَهُم بِٱلْـَٔاخِرَةِ هُمْ يُوقِنُونَ

जो नमाज़ को पाबन्दी से अदा करते हैं और ज़कात दिया करते हैं और यही लोग आख़िरत (क़यामत) का भी यक़ीन रखते हैं

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{4} إِنَّ ٱلَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِٱلْـَٔاخِرَةِ زَيَّنَّا لَهُمْ أَعْمَـٰلَهُمْ فَهُمْ يَعْمَهُونَ

इसमें शक नहीं कि जो लोग आखिरत पर ईमान नहीं रखते (गोया) हमने ख़ुद (उनकी कारस्तानियों को उनकी नज़र में) अच्छा कर दिखाया है

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{5} أُو۟لَـٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ لَهُمْ سُوٓءُ ٱلْعَذَابِ وَهُمْ فِى ٱلْـَٔاخِرَةِ هُمُ ٱلْأَخْسَرُونَ

तो ये लोग भटकते फिरते हैं- यही वह लोग हैं जिनके लिए (क़यामत में) बड़ा अज़ाब है और यही लोग आख़िरत में सबसे ज्यादा घाटा उठाने वाले हैं

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{6} وَإِنَّكَ لَتُلَقَّى ٱلْقُرْءَانَ مِن لَّدُنْ حَكِيمٍ عَلِيمٍ

और (ऐ रसूल) तुमको तो क़ुरान एक बडे वाक़िफकार हकीम की बारगाह से अता किया जाता है

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{7} إِذْ قَالَ مُوسَىٰ لِأَهْلِهِۦٓ إِنِّىٓ ءَانَسْتُ نَارًۭا سَـَٔاتِيكُم مِّنْهَا بِخَبَرٍ أَوْ ءَاتِيكُم بِشِهَابٍۢ قَبَسٍۢ لَّعَلَّكُمْ تَصْطَلُونَ

(वह वाक़िया याद दिलाओ) जब मूसा ने अपने लड़के बालों से कहा कि मैने (अपनी बायीं तरफ) आग देखी है (एक ज़रा ठहरो तो) मै वहाँ से कुछ (राह की) ख़बर लाँऊ या तुम्हें एक सुलगता हुआ आग का अंगारा ला दूँ ताकि तुम तापो

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{8} فَلَمَّا جَآءَهَا نُودِىَ أَنۢ بُورِكَ مَن فِى ٱلنَّارِ وَمَنْ حَوْلَهَا وَسُبْحَـٰنَ ٱللَّهِ رَبِّ ٱلْعَـٰلَمِينَ

ग़रज़ जब मूसा इस आग के पास आए तो उनको आवाज़ आयी कि मुबारक है वह जो आग में (तजल्ली दिखाना) है और जो उसके गिर्द है और वह ख़ुदा सारे जहाँ का पालने वाला है

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{9} يَـٰمُوسَىٰٓ إِنَّهُۥٓ أَنَا ٱللَّهُ ٱلْعَزِيزُ ٱلْحَكِيمُ

(हर ऐब से) पाक व पाकीज़ा है- ऐ मूसा इसमें शक नहीं कि मै ज़बरदस्त हिकमत वाला हूँ

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{10} وَأَلْقِ عَصَاكَ ۚ فَلَمَّا رَءَاهَا تَهْتَزُّ كَأَنَّهَا جَآنٌّۭ وَلَّىٰ مُدْبِرًۭا وَلَمْ يُعَقِّبْ ۚ يَـٰمُوسَىٰ لَا تَخَفْ إِنِّى لَا يَخَافُ لَدَىَّ ٱلْمُرْسَلُونَ

और (हाँ) अपनी छड़ी तो (ज़मीन पर) डाल दो तो जब मूसा ने उसको देखा कि वह इस तरह लहरा रही है गोया वह जिन्दा अज़दहा है तो पिछले पावँ भाग चले और पीछे मुड़कर भी न देखा (तो हमने कहा) ऐ मूसा डरो नहीं हमारे पास पैग़म्बर लोग डरा नहीं करते हैं

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{11} إِلَّا مَن ظَلَمَ ثُمَّ بَدَّلَ حُسْنًۢا بَعْدَ سُوٓءٍۢ فَإِنِّى غَفُورٌۭ رَّحِيمٌۭ

(मुतमइन हो जाते है) मगर जो शख्स गुनाह करे फिर गुनाह के बाद उसे नेकी (तौबा) से बदल दे तो अलबत्ता बड़ा बख्शने वाला मेहरबान हूँ

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{12} وَأَدْخِلْ يَدَكَ فِى جَيْبِكَ تَخْرُجْ بَيْضَآءَ مِنْ غَيْرِ سُوٓءٍۢ ۖ فِى تِسْعِ ءَايَـٰتٍ إِلَىٰ فِرْعَوْنَ وَقَوْمِهِۦٓ ۚ إِنَّهُمْ كَانُوا۟ قَوْمًۭا فَـٰسِقِينَ

(वहाँ) और अपना हाथ अपने गरेबॉ में तो डालो कि वह सफेद बुर्राक़ होकर बेऐब निकल आएगा (ये वह मौजिज़े) मिन जुमला नौ मोजिज़ात के हैं जो तुमको मिलेगें तुम फिरऔन और उसकी क़ौम के पास (जाओ) क्योंकि वह बदकिरदार लोग हैं

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{13} فَلَمَّا جَآءَتْهُمْ ءَايَـٰتُنَا مُبْصِرَةًۭ قَالُوا۟ هَـٰذَا سِحْرٌۭ مُّبِينٌۭ

तो जब उनके पास हमारे ऑंखें खोल देने वाले मैजिज़े आए तो कहने लगे ये तो खुला हुआ जादू है

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{14} وَجَحَدُوا۟ بِهَا وَٱسْتَيْقَنَتْهَآ أَنفُسُهُمْ ظُلْمًۭا وَعُلُوًّۭا ۚ فَٱنظُرْ كَيْفَ كَانَ عَـٰقِبَةُ ٱلْمُفْسِدِينَ

और बावजूद के उनके दिल को उन मौजिज़ात का यक़ीन था मगर फिर भी उन लोगों ने सरकशी और तकब्बुर से उनको न माना तो (ऐ रसूल) देखो कि (आखिर) मुफसिदों का अन्जाम क्या होगा

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{15} وَلَقَدْ ءَاتَيْنَا دَاوُۥدَ وَسُلَيْمَـٰنَ عِلْمًۭا ۖ وَقَالَا ٱلْحَمْدُ لِلَّهِ ٱلَّذِى فَضَّلَنَا عَلَىٰ كَثِيرٍۢ مِّنْ عِبَادِهِ ٱلْمُؤْمِنِينَ

और इसमें शक नहीं कि हमने दाऊद और सुलेमान को इल्म अता किया और दोनों ने (ख़ुश होकर) कहा ख़ुदा का शुक्र जिसने हमको अपने बहुतेरे ईमानदार बन्दों पर फज़ीलत दी

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{16} وَوَرِثَ سُلَيْمَـٰنُ دَاوُۥدَ ۖ وَقَالَ يَـٰٓأَيُّهَا ٱلنَّاسُ عُلِّمْنَا مَنطِقَ ٱلطَّيْرِ وَأُوتِينَا مِن كُلِّ شَىْءٍ ۖ إِنَّ هَـٰذَا لَهُوَ ٱلْفَضْلُ ٱلْمُبِينُ

और (इल्म हिकमत जाएदाद (मनकूला) गैर मनकूला सब में) सुलेमान दाऊद के वारिस हुए और कहा कि लोग हम को (ख़ुदा के फज़ल से) परिन्दों की बोली भी सिखायी गयी है और हमें (दुनिया की) हर चीज़ अता की गयी है इसमें शक नहीं कि ये यक़ीनी (ख़ुदा का) सरीही फज़ल व करम है

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{17} وَحُشِرَ لِسُلَيْمَـٰنَ جُنُودُهُۥ مِنَ ٱلْجِنِّ وَٱلْإِنسِ وَٱلطَّيْرِ فَهُمْ يُوزَعُونَ

और सुलेमान के सामने उनके लशकर जिन्नात और आदमी और परिन्दे सब जमा किए जाते थे

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{18} حَتَّىٰٓ إِذَآ أَتَوْا۟ عَلَىٰ وَادِ ٱلنَّمْلِ قَالَتْ نَمْلَةٌۭ يَـٰٓأَيُّهَا ٱلنَّمْلُ ٱدْخُلُوا۟ مَسَـٰكِنَكُمْ لَا يَحْطِمَنَّكُمْ سُلَيْمَـٰنُ وَجُنُودُهُۥ وَهُمْ لَا يَشْعُرُونَ

तो वह सबके सब (मसल मसल) खडे क़िए जाते थे (ग़रज़ इस तरह लशकर चलता) यहाँ तक कि जब (एक दिन) चीटीयों के मैदान में आ निकले तो एक चीटीं बोली ऐ चीटीयों अपने अपने बिल में घुस जाओ- ऐसा न हो कि सुलेमान और उनका लश्कर तुम्हे रौन्द डाले और उन्हें उसकी ख़बर भी न हो

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{19} فَتَبَسَّمَ ضَاحِكًۭا مِّن قَوْلِهَا وَقَالَ رَبِّ أَوْزِعْنِىٓ أَنْ أَشْكُرَ نِعْمَتَكَ ٱلَّتِىٓ أَنْعَمْتَ عَلَىَّ وَعَلَىٰ وَٰلِدَىَّ وَأَنْ أَعْمَلَ صَـٰلِحًۭا تَرْضَىٰهُ وَأَدْخِلْنِى بِرَحْمَتِكَ فِى عِبَادِكَ ٱلصَّـٰلِحِينَ

तो सुलेमान इस बात से मुस्कुरा के हँस पड़ें और अर्ज क़ी परवरदिगार मुझे तौफीक़ अता फरमा कि जैसी जैसी नेअमतें तूने मुझ पर और मेरे वालदैन पर नाज़िल फरमाई हैं मै (उनका) शुक्रिया अदा करुँ और मैं ऐसे नेक काम करुँ जिसे तू पसन्द फरमाए और तू अपनी ख़ास मेहरबानी से मुझे (अपने) नेकोकार बन्दों में दाखिल कर

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{20} وَتَفَقَّدَ ٱلطَّيْرَ فَقَالَ مَا لِىَ لَآ أَرَى ٱلْهُدْهُدَ أَمْ كَانَ مِنَ ٱلْغَآئِبِينَ

और सुलेमान ने परिन्दों (के लश्कर) की हाज़िरी ली तो कहने लगे कि क्या बात है कि मै हुदहुद को (उसकी जगह पर) नहीं देखता क्या (वाक़ई में) वह कही ग़ायब है

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{21} لَأُعَذِّبَنَّهُۥ عَذَابًۭا شَدِيدًا أَوْ لَأَا۟ذْبَحَنَّهُۥٓ أَوْ لَيَأْتِيَنِّى بِسُلْطَـٰنٍۢ مُّبِينٍۢ

(अगर ऐसा है तो) मै उसे सख्त से सख्त सज़ा दूँगा या (नहीं तो ) उसे ज़बाह ही कर डालूँगा या वह (अपनी बेगुनाही की) कोई साफ दलील मेरे पास पेश करे

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{22} فَمَكَثَ غَيْرَ بَعِيدٍۢ فَقَالَ أَحَطتُ بِمَا لَمْ تُحِطْ بِهِۦ وَجِئْتُكَ مِن سَبَإٍۭ بِنَبَإٍۢ يَقِينٍ

ग़रज़ सुलेमान ने थोड़ी ही देर (तवक्कुफ़ किया था कि (हुदहुद) आ गया) तो उसने अर्ज़ की मुझे यह बात मालूम हुई है जो अब तक हुज़ूर को भी मालूम नहीं है और आप के पास शहरे सबा से एक तहक़ीकी ख़बर लेकर आया हूँ

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{23} إِنِّى وَجَدتُّ ٱمْرَأَةًۭ تَمْلِكُهُمْ وَأُوتِيَتْ مِن كُلِّ شَىْءٍۢ وَلَهَا عَرْشٌ عَظِيمٌۭ

मैने एक औरत को देखा जो वहाँ के लोगों पर सलतनत करती है और उसे (दुनिया की) हर चीज़ अता की गयी है और उसका एक बड़ा तख्त है

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{24} وَجَدتُّهَا وَقَوْمَهَا يَسْجُدُونَ لِلشَّمْسِ مِن دُونِ ٱللَّهِ وَزَيَّنَ لَهُمُ ٱلشَّيْطَـٰنُ أَعْمَـٰلَهُمْ فَصَدَّهُمْ عَنِ ٱلسَّبِيلِ فَهُمْ لَا يَهْتَدُونَ

मैने खुद मलका को देखा और उसकी क़ौम को देखा कि वह लोग ख़ुदा को छोड़कर आफताब को सजदा करते हैं शैतान ने उनकी करतूतों को (उनकी नज़र में) अच्छा कर दिखाया है और उनको राहे रास्त से रोक रखा है

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{25} أَلَّا يَسْجُدُوا۟ لِلَّهِ ٱلَّذِى يُخْرِجُ ٱلْخَبْءَ فِى ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ وَيَعْلَمُ مَا تُخْفُونَ وَمَا تُعْلِنُونَ

तो उन्हें (इतनी सी बात भी नहीं सूझती) कि वह लोग ख़ुदा ही का सजदा क्यों नहीं करते जो आसमान और ज़मीन की पोशीदा बातों को ज़ाहिर कर देता है और तुम लोग जो कुछ छिपाकर या ज़ाहिर करके करते हो सब जानता है

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{26} ٱللَّهُ لَآ إِلَـٰهَ إِلَّا هُوَ رَبُّ ٱلْعَرْشِ ٱلْعَظِيمِ ۩

अल्लाह वह है जिससे सिवा कोई माबूद नहीं वही (इतने) बड़े अर्श का मालिक है (सजदा)

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{27} ۞ قَالَ سَنَنظُرُ أَصَدَقْتَ أَمْ كُنتَ مِنَ ٱلْكَـٰذِبِينَ

(ग़रज़) सुलेमान ने कहा हम अभी देखते हैं कि तूने सच सच कहा या तू झूठा है

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{28} ٱذْهَب بِّكِتَـٰبِى هَـٰذَا فَأَلْقِهْ إِلَيْهِمْ ثُمَّ تَوَلَّ عَنْهُمْ فَٱنظُرْ مَاذَا يَرْجِعُونَ

(अच्छा) हमारा ये ख़त लेकर जा और उसको उन लोगों के सामने डाल दे फिर उन के पास से जाना फिर देखते रहना कि वह लोग अख़िर क्या जवाब देते हैं

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{29} قَالَتْ يَـٰٓأَيُّهَا ٱلْمَلَؤُا۟ إِنِّىٓ أُلْقِىَ إِلَىَّ كِتَـٰبٌۭ كَرِيمٌ

(ग़रज़) हुद हुद ने मलका के पास ख़त पहुँचा दिया तो मलका बोली ऐ (मेरे दरबार के) सरदारों ये एक वाजिबुल एहतराम ख़त मेरे पास डाल दिया गया है

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{30} إِنَّهُۥ مِن سُلَيْمَـٰنَ وَإِنَّهُۥ بِسْمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحْمَـٰنِ ٱلرَّحِيمِ

सुलेमान की तरफ से है (ये उसका सरनामा) है बिस्मिल्लाहिररहमानिरहीम

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{31} أَلَّا تَعْلُوا۟ عَلَىَّ وَأْتُونِى مُسْلِمِينَ

(और मज़मून) यह है कि मुझ से सरकशी न करो और मेरे सामने फरमाबरदार बन कर हाज़िर हो

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{32} قَالَتْ يَـٰٓأَيُّهَا ٱلْمَلَؤُا۟ أَفْتُونِى فِىٓ أَمْرِى مَا كُنتُ قَاطِعَةً أَمْرًا حَتَّىٰ تَشْهَدُونِ

तब मलका (विलक़ीस) बोली ऐ मेरे दरबार के सरदारों तुम मेरे इस मामले में मुझे राय दो (क्योंकि मेरा तो ये क़ायदा है कि) जब तक तुम लोग मेरे सामने मौजूद न हो (मशवरा न दे दो) मैं किसी अम्र में क़तई फैसला न किया करती

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{33} قَالُوا۟ نَحْنُ أُو۟لُوا۟ قُوَّةٍۢ وَأُو۟لُوا۟ بَأْسٍۢ شَدِيدٍۢ وَٱلْأَمْرُ إِلَيْكِ فَٱنظُرِى مَاذَا تَأْمُرِينَ

उन लोगों ने अर्ज़ की हम बड़े ज़ोरावर बडे लड़ने वाले हैं और (आइन्दा) हर अम्र का आप को एख्तियार है तो जो हुक्म दे आप (खुद अच्छी) तरह इसके अन्जाम पर ग़ौर कर ले

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{34} قَالَتْ إِنَّ ٱلْمُلُوكَ إِذَا دَخَلُوا۟ قَرْيَةً أَفْسَدُوهَا وَجَعَلُوٓا۟ أَعِزَّةَ أَهْلِهَآ أَذِلَّةًۭ ۖ وَكَذَٰلِكَ يَفْعَلُونَ

मलका ने कहा बादशाहों का क़ायदा है कि जब किसी बस्ती में (बज़ोरे फ़तेह) दाख़िल हो जाते हैं तो उसको उजाड़ देते हैं और वहाँ के मुअज़िज़ लोगों को ज़लील व रुसवा कर देते हैं और ये लोग भी ऐसा ही करेंगे

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{35} وَإِنِّى مُرْسِلَةٌ إِلَيْهِم بِهَدِيَّةٍۢ فَنَاظِرَةٌۢ بِمَ يَرْجِعُ ٱلْمُرْسَلُونَ

और मैं उनके पास (एलचियों की माअरफ़त कुछ तोहफा भेजकर देखती हूँ कि एलची लोग क्या जवाब लाते हैं) ग़रज़ जब बिलक़ीस का एलची (तोहफा लेकर) सुलेमान के पास आया

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{36} فَلَمَّا جَآءَ سُلَيْمَـٰنَ قَالَ أَتُمِدُّونَنِ بِمَالٍۢ فَمَآ ءَاتَىٰنِۦَ ٱللَّهُ خَيْرٌۭ مِّمَّآ ءَاتَىٰكُم بَلْ أَنتُم بِهَدِيَّتِكُمْ تَفْرَحُونَ

तो सुलेमान ने कहा क्या तुम लोग मुझे माल की मदद देते हो तो ख़ुदा ने जो (माल दुनिया) मुझे अता किया है वह (माल) उससे जो तुम्हें बख्शा है कहीं बेहतर है (मैं तो नही) बल्कि तुम्ही लोग अपने तोहफे तहायफ़ से ख़ुश हुआ करो

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{37} ٱرْجِعْ إِلَيْهِمْ فَلَنَأْتِيَنَّهُم بِجُنُودٍۢ لَّا قِبَلَ لَهُم بِهَا وَلَنُخْرِجَنَّهُم مِّنْهَآ أَذِلَّةًۭ وَهُمْ صَـٰغِرُونَ

(फिर तोहफा लाने वाले ने कहा) तो उन्हीं लोगों के पास जा हम यक़ीनन ऐसे लश्कर से उन पर चढ़ाई करेंगे जिसका उससे मुक़ाबला न हो सकेगा और हम ज़रुर उन्हें वहाँ से ज़लील व रुसवा करके निकाल बाहर करेंगे

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{38} قَالَ يَـٰٓأَيُّهَا ٱلْمَلَؤُا۟ أَيُّكُمْ يَأْتِينِى بِعَرْشِهَا قَبْلَ أَن يَأْتُونِى مُسْلِمِينَ

(जब वह जा चुका) तो सुलेमान ने अपने अहले दरबार से कहा ऐ मेरे दरबार के सरदारो तुममें से कौन ऐसा है कि क़ब्ल इसके वह लोग मेरे सामने फरमाबरदार बनकर आयें

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{39} قَالَ عِفْرِيتٌۭ مِّنَ ٱلْجِنِّ أَنَا۠ ءَاتِيكَ بِهِۦ قَبْلَ أَن تَقُومَ مِن مَّقَامِكَ ۖ وَإِنِّى عَلَيْهِ لَقَوِىٌّ أَمِينٌۭ

मलिका का तख्त मेरे पास ले आए (इस पर) जिनों में से एक दियो बोल उठा कि क़ब्ल इसके कि हुज़ूर (दरबार बरख़ास्त करके) अपनी जगह से उठे मै तख्त आपके पास ले आऊँगा और यक़ीनन उस पर क़ाबू रखता हूँ (और) ज़िम्मेदार हूँ

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{40} قَالَ ٱلَّذِى عِندَهُۥ عِلْمٌۭ مِّنَ ٱلْكِتَـٰبِ أَنَا۠ ءَاتِيكَ بِهِۦ قَبْلَ أَن يَرْتَدَّ إِلَيْكَ طَرْفُكَ ۚ فَلَمَّا رَءَاهُ مُسْتَقِرًّا عِندَهُۥ قَالَ هَـٰذَا مِن فَضْلِ رَبِّى لِيَبْلُوَنِىٓ ءَأَشْكُرُ أَمْ أَكْفُرُ ۖ وَمَن شَكَرَ فَإِنَّمَا يَشْكُرُ لِنَفْسِهِۦ ۖ وَمَن كَفَرَ فَإِنَّ رَبِّى غَنِىٌّۭ كَرِيمٌۭ

इस पर अभी सुलेमान कुछ कहने न पाए थे कि वह शख्स (आसिफ़ बिन बरख़िया) जिसके पास किताबे (ख़ुदा) का किस कदर इल्म था बोला कि मै आप की पलक झपकने से पहले तख्त को आप के पास हाज़िर किए देता हूँ (बस इतने ही में आ गया) तो जब सुलेमान ने उसे अपने पास मौजूद पाया तो कहने लगे ये महज़ मेरे परवरदिगार का फज़ल व करम है ताकि वह मेरा इम्तेहान ले कि मै उसका शुक्र करता हूँ या नाशुक्री करता हूँ और जो कोई शुक्र करता है वह अपनी ही भलाई के लिए शुक्र करता है और जो शख्स ना शुक्री करता है तो (याद रखिए) मेरा परवरदिगार यक़ीनन बेपरवा और सख़ी है

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{41} قَالَ نَكِّرُوا۟ لَهَا عَرْشَهَا نَنظُرْ أَتَهْتَدِىٓ أَمْ تَكُونُ مِنَ ٱلَّذِينَ لَا يَهْتَدُونَ

(उसके बाद) सुलेमान ने कहा कि उसके तख्त में (उसकी अक्ल के इम्तिहान के लिए) तग़य्युर तबददुल कर दो ताकि हम देखें कि फिर भी वह समझ रखती है या उन लोगों में है जो कुछ समझ नहीं रखते

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{42} فَلَمَّا جَآءَتْ قِيلَ أَهَـٰكَذَا عَرْشُكِ ۖ قَالَتْ كَأَنَّهُۥ هُوَ ۚ وَأُوتِينَا ٱلْعِلْمَ مِن قَبْلِهَا وَكُنَّا مُسْلِمِينَ

(चुनान्चे ऐसा ही किया गया) फिर जब बिलक़ीस (सुलेमान के पास) आयी तो पूछा गया कि तुम्हारा तख्त भी ऐसा ही है वह बोली गोया ये वही है (फिर कहने लगी) हमको तो उससे पहले ही (आपकी नुबूवत) मालूम हो गयी थी और हम तो आपके फ़रमाबरदार थे ही

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{43} وَصَدَّهَا مَا كَانَت تَّعْبُدُ مِن دُونِ ٱللَّهِ ۖ إِنَّهَا كَانَتْ مِن قَوْمٍۢ كَـٰفِرِينَ

और ख़ुदा के सिवा जिसे वह पूजती थी सुलेमान ने उससे उसे रोक दिया क्योंकि वह काफिर क़ौम की थी (और आफताब को पूजती थी)

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{44} قِيلَ لَهَا ٱدْخُلِى ٱلصَّرْحَ ۖ فَلَمَّا رَأَتْهُ حَسِبَتْهُ لُجَّةًۭ وَكَشَفَتْ عَن سَاقَيْهَا ۚ قَالَ إِنَّهُۥ صَرْحٌۭ مُّمَرَّدٌۭ مِّن قَوَارِيرَ ۗ قَالَتْ رَبِّ إِنِّى ظَلَمْتُ نَفْسِى وَأَسْلَمْتُ مَعَ سُلَيْمَـٰنَ لِلَّهِ رَبِّ ٱلْعَـٰلَمِينَ

फिर उससे कहा गया कि आप अब महल मे चलिए तो जब उसने महल (में शीशे के फर्श) को देखा तो उसको गहरा पानी समझी (और गुज़रने के लिए इस तरह अपने पाएचे उठा लिए कि) अपनी दोनों पिन्डलियाँ खोल दी सुलेमान ने कहा (तुम डरो नहीं) ये (पानी नहीं है) महल है जो शीशे से मढ़ा हुआ है (उस वक्त तम्बीह हुई और) अर्ज़ की परवरदिगार मैने (आफताब को पूजा कर) यक़ीनन अपने ऊपर ज़ुल्म किया

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{45} وَلَقَدْ أَرْسَلْنَآ إِلَىٰ ثَمُودَ أَخَاهُمْ صَـٰلِحًا أَنِ ٱعْبُدُوا۟ ٱللَّهَ فَإِذَا هُمْ فَرِيقَانِ يَخْتَصِمُونَ

और अब मैं सुलेमान के साथ सारे जहाँ के पालने वाले खुदा पर ईमान लाती हूँ और हम ही ने क़ौम समूद के पास उनके भाई सालेह को पैग़म्बर बनाकर भेजा कि तुम लोग ख़ुदा की इबादत करो तो वह सालेह के आते ही (मोमिन व काफिर) दो फरीक़ बनकर बाहम झगड़ने लगे

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{46} قَالَ يَـٰقَوْمِ لِمَ تَسْتَعْجِلُونَ بِٱلسَّيِّئَةِ قَبْلَ ٱلْحَسَنَةِ ۖ لَوْلَا تَسْتَغْفِرُونَ ٱللَّهَ لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُونَ

सालेह ने कहा ऐ मेरी क़ौम (आख़िर) तुम लोग भलाई से पहल बुराई के वास्ते जल्दी क्यों कर रहे हो तुम लोग ख़ुदा की बारगाह में तौबा व अस्तग़फार क्यों नही करते ताकि तुम पर रहम किया जाए

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{47} قَالُوا۟ ٱطَّيَّرْنَا بِكَ وَبِمَن مَّعَكَ ۚ قَالَ طَـٰٓئِرُكُمْ عِندَ ٱللَّهِ ۖ بَلْ أَنتُمْ قَوْمٌۭ تُفْتَنُونَ

वह लोग बोले हमने तो तुम से और तुम्हारे साथियों से बुरा शगुन पाया सालेह ने कहा तुम्हारी बदकिस्मती ख़ुदा के पास है (ये सब कुछ नहीं) बल्कि तुम लोगों की आज़माइश की जा रही है

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{48} وَكَانَ فِى ٱلْمَدِينَةِ تِسْعَةُ رَهْطٍۢ يُفْسِدُونَ فِى ٱلْأَرْضِ وَلَا يُصْلِحُونَ

और शहर में नौ आदमी थे जो मुल्क के बानीये फसाद थे और इसलाह की फिक्र न करते थे-उन लोगों ने (आपस में) कहा कि बाहम ख़ुदा की क़सम खाते जाओ

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{49} قَالُوا۟ تَقَاسَمُوا۟ بِٱللَّهِ لَنُبَيِّتَنَّهُۥ وَأَهْلَهُۥ ثُمَّ لَنَقُولَنَّ لِوَلِيِّهِۦ مَا شَهِدْنَا مَهْلِكَ أَهْلِهِۦ وَإِنَّا لَصَـٰدِقُونَ

कि हम लोग सालेह और उसके लड़के बालो पर शब खून करे उसके बाद उसके वाली वारिस से कह देगें कि हम लोग उनके घर वालों को हलाक़ होते वक्त मौजूद ही न थे और हम लोग तो यक़ीनन सच्चे हैं

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{50} وَمَكَرُوا۟ مَكْرًۭا وَمَكَرْنَا مَكْرًۭا وَهُمْ لَا يَشْعُرُونَ

और उन लोगों ने एक तदबीर की और हमने भी एक तदबीर की और (हमारी तदबीर की) उनको ख़बर भी न हुई

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{51} فَٱنظُرْ كَيْفَ كَانَ عَـٰقِبَةُ مَكْرِهِمْ أَنَّا دَمَّرْنَـٰهُمْ وَقَوْمَهُمْ أَجْمَعِينَ

तो (ऐ रसूल) तुम देखो उनकी तदबीर का क्या (बुरा) अन्जाम हुआ कि हमने उनको और सारी क़ौम को हलाक कर डाला

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{52} فَتِلْكَ بُيُوتُهُمْ خَاوِيَةًۢ بِمَا ظَلَمُوٓا۟ ۗ إِنَّ فِى ذَٰلِكَ لَـَٔايَةًۭ لِّقَوْمٍۢ يَعْلَمُونَ

ये बस उनके घर हैं कि उनकी नाफरमानियों की वज़ह से ख़ाली वीरान पड़े हैं इसमे शक नही कि उस वाक़िये में वाक़िफ कार लोगों के लिए बड़ी इबरत है

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{53} وَأَنجَيْنَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ وَكَانُوا۟ يَتَّقُونَ

और हमने उन लोगों को जो ईमान लाए थे और परहेज़गार थे बचा लिया

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{54} وَلُوطًا إِذْ قَالَ لِقَوْمِهِۦٓ أَتَأْتُونَ ٱلْفَـٰحِشَةَ وَأَنتُمْ تُبْصِرُونَ

और (ऐ रसूल) लूत को (याद करो) जब उन्होंने अपनी क़ौम से कहा कि क्या तुम देखभाल कर (समझ बूझ कर) ऐसी बेहयाई करते हो

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{55} أَئِنَّكُمْ لَتَأْتُونَ ٱلرِّجَالَ شَهْوَةًۭ مِّن دُونِ ٱلنِّسَآءِ ۚ بَلْ أَنتُمْ قَوْمٌۭ تَجْهَلُونَ

क्या तुम औरतों को छोड़कर शहवत से मर्दों के आते हो (ये तुम अच्छा नहीं करते) बल्कि तुम लोग बड़ी जाहिल क़ौम हो तो लूत की क़ौम का इसके सिवा कुछ जवाब न था

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{56} ۞ فَمَا كَانَ جَوَابَ قَوْمِهِۦٓ إِلَّآ أَن قَالُوٓا۟ أَخْرِجُوٓا۟ ءَالَ لُوطٍۢ مِّن قَرْيَتِكُمْ ۖ إِنَّهُمْ أُنَاسٌۭ يَتَطَهَّرُونَ

कि वह लोग बोल उठे कि लूत के खानदान को अपनी बस्ती (सदूम) से निकाल बाहर करो ये लोग बड़े पाक साफ बनना चाहते हैं

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{57} فَأَنجَيْنَـٰهُ وَأَهْلَهُۥٓ إِلَّا ٱمْرَأَتَهُۥ قَدَّرْنَـٰهَا مِنَ ٱلْغَـٰبِرِينَ

ग़रज हमने लूत को और उनके ख़ानदान को बचा लिया मगर उनकी बीवी कि हमने उसकी तक़दीर में पीछे रह जाने वालों में लिख दिया था

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{58} وَأَمْطَرْنَا عَلَيْهِم مَّطَرًۭا ۖ فَسَآءَ مَطَرُ ٱلْمُنذَرِينَ

और (फिर तो) हमने उन लोगों पर (पत्थर का) मेंह बरसाया तो जो लोग डराए जा चुके थे उन पर क्या बुरा मेंह बरसा

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{59} قُلِ ٱلْحَمْدُ لِلَّهِ وَسَلَـٰمٌ عَلَىٰ عِبَادِهِ ٱلَّذِينَ ٱصْطَفَىٰٓ ۗ ءَآللَّهُ خَيْرٌ أَمَّا يُشْرِكُونَ

(ऐ रसूल) तुम कह दो (उनके हलाक़ होने पर) खुदा का शुक्र और उसके बरगुज़ीदा बन्दों पर सलाम भला ख़ुदा बेहतर है या वह चीज़ जिसे ये लोग शरीके ख़ुदा कहते हैं

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{60} أَمَّنْ خَلَقَ ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضَ وَأَنزَلَ لَكُم مِّنَ ٱلسَّمَآءِ مَآءًۭ فَأَنۢبَتْنَا بِهِۦ حَدَآئِقَ ذَاتَ بَهْجَةٍۢ مَّا كَانَ لَكُمْ أَن تُنۢبِتُوا۟ شَجَرَهَآ ۗ أَءِلَـٰهٌۭ مَّعَ ٱللَّهِ ۚ بَلْ هُمْ قَوْمٌۭ يَعْدِلُونَ

भला वह कौन है जिसने आसमान और ज़मीन को पैदा किया और तुम्हारे वास्ते आसमान से पानी बरसाया फिर हम ही ने पानी से दिल चस्प (ख़ुशनुमा) बाग़ उठाए तुम्हारे तो ये बस की बात न थी कि तुम उनके दरख्तों को उगा सकते तो क्या ख़ुदा के साथ कोई और माबूद भी है (हरगिज़ नहीं) बल्कि ये लोग खुद अपने जी से गढ़ के बुतो को उसके बराबर बनाते हैं

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{61} أَمَّن جَعَلَ ٱلْأَرْضَ قَرَارًۭا وَجَعَلَ خِلَـٰلَهَآ أَنْهَـٰرًۭا وَجَعَلَ لَهَا رَوَٰسِىَ وَجَعَلَ بَيْنَ ٱلْبَحْرَيْنِ حَاجِزًا ۗ أَءِلَـٰهٌۭ مَّعَ ٱللَّهِ ۚ بَلْ أَكْثَرُهُمْ لَا يَعْلَمُونَ

भला वह कौन है जिसने ज़मीन को (लोगों के) ठहरने की जगह बनाया और उसके दरमियान जा बजा नहरें दौड़ायी और उसकी मज़बूती के वास्ते पहाड़ बनाए और (मीठे खारी) दरियाओं के दरमियान हदे फासिल बनाया तो क्या ख़ुदा के साथ कोई और माबूद भी है (हरगिज़ नहीं) बल्कि उनमें के अकसर कुछ जानते ही नहीं

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{62} أَمَّن يُجِيبُ ٱلْمُضْطَرَّ إِذَا دَعَاهُ وَيَكْشِفُ ٱلسُّوٓءَ وَيَجْعَلُكُمْ خُلَفَآءَ ٱلْأَرْضِ ۗ أَءِلَـٰهٌۭ مَّعَ ٱللَّهِ ۚ قَلِيلًۭا مَّا تَذَكَّرُونَ

भला वह कौन है कि जब मुज़तर उसे पुकारे तो दुआ क़ुबूल करता है और मुसीबत को दूर करता है और तुम लोगों को ज़मीन में (अपना) नायब बनाता है तो क्या ख़ुदा के साथ कोई और माबूद है (हरगिज़ नहीं) उस पर भी तुम लोग बहुत कम नसीहत व इबरत हासिल करते हो

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{63} أَمَّن يَهْدِيكُمْ فِى ظُلُمَـٰتِ ٱلْبَرِّ وَٱلْبَحْرِ وَمَن يُرْسِلُ ٱلرِّيَـٰحَ بُشْرًۢا بَيْنَ يَدَىْ رَحْمَتِهِۦٓ ۗ أَءِلَـٰهٌۭ مَّعَ ٱللَّهِ ۚ تَعَـٰلَى ٱللَّهُ عَمَّا يُشْرِكُونَ

भला वह कौन है जो तुम लोगों की ख़़ुश्की और तरी की तारिक़ियों में राह दिखाता है और कौन उसकी बाराने रहमत के आगे आगे (बारिश की) ख़ुशखबरी लेकर हवाओं को भेजता है-क्या ख़ुदा के साथ कोई और माबूद भी है (हरगिज़ नहीं) ये लोग जिन चीज़ों को ख़ुदा का शरीक ठहराते हैं ख़ुदा उससे बालातर है

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{64} أَمَّن يَبْدَؤُا۟ ٱلْخَلْقَ ثُمَّ يُعِيدُهُۥ وَمَن يَرْزُقُكُم مِّنَ ٱلسَّمَآءِ وَٱلْأَرْضِ ۗ أَءِلَـٰهٌۭ مَّعَ ٱللَّهِ ۚ قُلْ هَاتُوا۟ بُرْهَـٰنَكُمْ إِن كُنتُمْ صَـٰدِقِينَ

भला वह कौन हैं जो ख़िलकत को नए सिरे से पैदा करता है फिर उसे दोबारा (मरने के बाद) पैदा करेगा और कौन है जो तुम लोगों को आसमान व ज़मीन से रिज़क़ देता है- तो क्या ख़ुदा के साथ कोई और माबूद भी है (हरग़िज़ नहीं) (ऐ रसूल) तुम (इन मुशरेकीन से) कहा दो कि अगर तुम सच्चे हो तो अपनी दलील पेश करो

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{65} قُل لَّا يَعْلَمُ مَن فِى ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ ٱلْغَيْبَ إِلَّا ٱللَّهُ ۚ وَمَا يَشْعُرُونَ أَيَّانَ يُبْعَثُونَ

(ऐ रसूल इन से) कह दो कि जितने लोग आसमान व ज़मीन में हैं उनमे से कोई भी गैब की बात के सिवा नहीं जानता और वह भी तो नहीं समझते कि क़ब्र से दोबारा कब ज़िन्दा उठ खडे क़िए जाएँगें

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{66} بَلِ ٱدَّٰرَكَ عِلْمُهُمْ فِى ٱلْـَٔاخِرَةِ ۚ بَلْ هُمْ فِى شَكٍّۢ مِّنْهَا ۖ بَلْ هُم مِّنْهَا عَمُونَ

बल्कि (असल ये है कि) आख़िरत के बारे में उनके इल्म का ख़ात्मा हो गया है बल्कि उसकी तरफ से शक में पड़ें हैं बल्कि (सच ये है कि) इससे ये लोग अंधे बने हुए हैं

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{67} وَقَالَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوٓا۟ أَءِذَا كُنَّا تُرَٰبًۭا وَءَابَآؤُنَآ أَئِنَّا لَمُخْرَجُونَ

और कुफ्फार कहने लगे कि क्या जब हम और हमारे बाप दादा (सड़ गल कर) मिट्टी हो जाएँगें तो क्या हम फिर निकाले जाएँगें

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{68} لَقَدْ وُعِدْنَا هَـٰذَا نَحْنُ وَءَابَآؤُنَا مِن قَبْلُ إِنْ هَـٰذَآ إِلَّآ أَسَـٰطِيرُ ٱلْأَوَّلِينَ

उसका तो पहले भी हम से और हमारे बाप दादाओं से वायदा किया गया था (कहाँ का उठना और कैसी क़यामत) ये तो हो न हो अगले लोगों के ढकोसले हैं

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{69} قُلْ سِيرُوا۟ فِى ٱلْأَرْضِ فَٱنظُرُوا۟ كَيْفَ كَانَ عَـٰقِبَةُ ٱلْمُجْرِمِينَ

(ऐ रसूल) लोगों से कह दो कि रुए ज़मीन पर ज़रा चल फिर कर देखो तो गुनाहगारों का अन्जाम क्या हुआ

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{70} وَلَا تَحْزَنْ عَلَيْهِمْ وَلَا تَكُن فِى ضَيْقٍۢ مِّمَّا يَمْكُرُونَ

(ऐ रसूल) तुम उनके हाल पर कुछ अफ़सोस न करो और जो चालें ये लोग (तुम्हारे ख़िलाफ) चल रहे हैं उससे तंग दिल न हो

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{71} وَيَقُولُونَ مَتَىٰ هَـٰذَا ٱلْوَعْدُ إِن كُنتُمْ صَـٰدِقِينَ

और ये (कुफ्फ़ार मुसलमानों से) पूछते हैं कि अगर तुम सच्चे हो तो (आख़िर) ये (क़यामत या अज़ाब का) वायदा कब पूरा होगा

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{72} قُلْ عَسَىٰٓ أَن يَكُونَ رَدِفَ لَكُم بَعْضُ ٱلَّذِى تَسْتَعْجِلُونَ

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि जिस (अज़ाब) की तुम लोग जल्दी मचा रहे हो क्या अजब है इसमे से कुछ करीब आ गया हो

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{73} وَإِنَّ رَبَّكَ لَذُو فَضْلٍ عَلَى ٱلنَّاسِ وَلَـٰكِنَّ أَكْثَرَهُمْ لَا يَشْكُرُونَ

और इसमें तो शक ही नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार लोगों पर बड़ा फज़ल व करम करने वाला है मगर बहुतेरे लोग (उसका) शुक्र नहीं करते

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{74} وَإِنَّ رَبَّكَ لَيَعْلَمُ مَا تُكِنُّ صُدُورُهُمْ وَمَا يُعْلِنُونَ

और इसमें तो शक नहीं जो बातें उनके दिलों में पोशीदा हैं और जो कुछ ये एलानिया करते हैं तुम्हारा परवरदिगार यक़ीनी जानता है

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{75} وَمَا مِنْ غَآئِبَةٍۢ فِى ٱلسَّمَآءِ وَٱلْأَرْضِ إِلَّا فِى كِتَـٰبٍۢ مُّبِينٍ

और आसमान व ज़मीन में कोई ऐसी बात पोशीदा नहीं जो वाज़ेए व रौशन किताब (लौहे महफूज़) में (लिखी) मौजूद न हो

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{76} إِنَّ هَـٰذَا ٱلْقُرْءَانَ يَقُصُّ عَلَىٰ بَنِىٓ إِسْرَٰٓءِيلَ أَكْثَرَ ٱلَّذِى هُمْ فِيهِ يَخْتَلِفُونَ

इसमें भी शक नहीं कि ये क़ुरान बनी इसराइल पर उनकी अक्सर बातों को जिन में ये इख्तेलाफ़ करते हैं ज़ाहिर कर देता है

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{77} وَإِنَّهُۥ لَهُدًۭى وَرَحْمَةٌۭ لِّلْمُؤْمِنِينَ

और इसमें भी शक नहीं कि ये कुरान ईमानदारों के वास्ते अज़सरतापा हिदायत व रहमत है

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{78} إِنَّ رَبَّكَ يَقْضِى بَيْنَهُم بِحُكْمِهِۦ ۚ وَهُوَ ٱلْعَزِيزُ ٱلْعَلِيمُ

(ऐ रसूल) बेशक तुम्हारा परवरदिगार अपने हुक्म से उनके आपस (के झगड़ों) का फैसला कर देगा और वह (सब पर) ग़ालिब और वाक़िफकार है

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{79} فَتَوَكَّلْ عَلَى ٱللَّهِ ۖ إِنَّكَ عَلَى ٱلْحَقِّ ٱلْمُبِينِ

तो (ऐ रसूल) तुम खुदा पर भरोसा रखो बेशक तुम यक़ीनी सरीही हक़ पर हो

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{80} إِنَّكَ لَا تُسْمِعُ ٱلْمَوْتَىٰ وَلَا تُسْمِعُ ٱلصُّمَّ ٱلدُّعَآءَ إِذَا وَلَّوْا۟ مُدْبِرِينَ

बेशक न तो तुम मुर्दों को (अपनी बात) सुना सकते हो और न बहरों को अपनी आवाज़ सुना सकते हो (ख़ासकर) जब वह पीठ फेर कर भाग ख़डें हो

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{81} وَمَآ أَنتَ بِهَـٰدِى ٱلْعُمْىِ عَن ضَلَـٰلَتِهِمْ ۖ إِن تُسْمِعُ إِلَّا مَن يُؤْمِنُ بِـَٔايَـٰتِنَا فَهُم مُّسْلِمُونَ

और न तुम अंधें को उनकी गुमराही से राह पर ला सकते हो तुम तो बस उन्हीं लोगों को (अपनी बात) सुना सकते हो जो हमारी आयतों पर ईमान रखते हैं

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{82} ۞ وَإِذَا وَقَعَ ٱلْقَوْلُ عَلَيْهِمْ أَخْرَجْنَا لَهُمْ دَآبَّةًۭ مِّنَ ٱلْأَرْضِ تُكَلِّمُهُمْ أَنَّ ٱلنَّاسَ كَانُوا۟ بِـَٔايَـٰتِنَا لَا يُوقِنُونَ

फिर वही लोग तो मानने वाले भी हैं जब उन लोगों पर (क़यामत का) वायदा पूरा होगा तो हम उनके वास्ते ज़मीन से एक चलने वाला निकाल खड़ा करेंगे जो उनसे ये बाते करेंगा कि (फलॉ फला) लोग हमारी आयतो का यक़ीन नहीं रखते थे

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{83} وَيَوْمَ نَحْشُرُ مِن كُلِّ أُمَّةٍۢ فَوْجًۭا مِّمَّن يُكَذِّبُ بِـَٔايَـٰتِنَا فَهُمْ يُوزَعُونَ

और (उस दिन को याद करो) जिस दिन हम हर उम्मत से एक ऐसे गिरोह को जो हमारी आयतों को झुठलाया करते थे (ज़िन्दा करके) जमा करेंगे फिर उन की टोलियाँ अलहदा अलहदा करेंगे

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{84} حَتَّىٰٓ إِذَا جَآءُو قَالَ أَكَذَّبْتُم بِـَٔايَـٰتِى وَلَمْ تُحِيطُوا۟ بِهَا عِلْمًا أَمَّاذَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ

यहाँ तक कि जब वह सब (ख़ुदा के सामने) आएँगें और ख़ुदा उनसे कहेगा क्या तुम ने हमारी आयतों को बगैर अच्छी तरह समझे बूझे झुठलाया-भला तुम क्या क्या करते थे और चूँकि ये लोग ज़ुल्म किया करते थे

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{85} وَوَقَعَ ٱلْقَوْلُ عَلَيْهِم بِمَا ظَلَمُوا۟ فَهُمْ لَا يَنطِقُونَ

इन पर (अज़ाब का) वायदा पूरा हो गया फिर ये लोग कुछ बोल भी तो न सकेंगें

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{86} أَلَمْ يَرَوْا۟ أَنَّا جَعَلْنَا ٱلَّيْلَ لِيَسْكُنُوا۟ فِيهِ وَٱلنَّهَارَ مُبْصِرًا ۚ إِنَّ فِى ذَٰلِكَ لَـَٔايَـٰتٍۢ لِّقَوْمٍۢ يُؤْمِنُونَ

क्या इन लोगों ने ये भी न देखा कि हमने रात को इसलिए बनाया कि ये लोग इसमे चैन करें और दिन को रौशन (ताकि देखभाल करे) बेशक इसमें ईमान लाने वालों के लिए (कुदरते ख़ुदा की) बहुत सी निशानियाँ हैं

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{87} وَيَوْمَ يُنفَخُ فِى ٱلصُّورِ فَفَزِعَ مَن فِى ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَمَن فِى ٱلْأَرْضِ إِلَّا مَن شَآءَ ٱللَّهُ ۚ وَكُلٌّ أَتَوْهُ دَٰخِرِينَ

और (उस दिन याद करो) जिस दिन सूर फूँका जाएगा तो जितने लोग आसमानों मे हैं और जितने लोग ज़मीन में हैं (ग़रज़ सब के सब) दहल जाएंगें मगर जिस शख्स को ख़ुदा चाहे (वो अलबत्ता मुतमइन रहेगा) और सब लोग उसकी बारगाह में ज़िल्लत व आजिज़ी की हालत में हाज़िर होगें

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{88} وَتَرَى ٱلْجِبَالَ تَحْسَبُهَا جَامِدَةًۭ وَهِىَ تَمُرُّ مَرَّ ٱلسَّحَابِ ۚ صُنْعَ ٱللَّهِ ٱلَّذِىٓ أَتْقَنَ كُلَّ شَىْءٍ ۚ إِنَّهُۥ خَبِيرٌۢ بِمَا تَفْعَلُونَ

और तुम पहाड़ों को देखकर उन्हें मज़बूर जमे हुए समझतें हो हालाकि ये (क़यामत के दिन) बादल की तरह उड़े उडे फ़िरेगें (ये भी) ख़ुदा की कारीगरी है कि जिसने हर चीज़ को ख़ूब मज़बूत बनाया है बेशक जो कुछ तुम लोग करते हो उससे वह ख़ूब वाक़िफ़ है

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{89} مَن جَآءَ بِٱلْحَسَنَةِ فَلَهُۥ خَيْرٌۭ مِّنْهَا وَهُم مِّن فَزَعٍۢ يَوْمَئِذٍ ءَامِنُونَ

जो शख्स नेक काम करेगा उसके लिए उसकी जज़ा उससे कहीं बेहतर है ओर ये लोग उस दिन ख़ौफ व ख़तरे से महफूज़ रहेंगे

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{90} وَمَن جَآءَ بِٱلسَّيِّئَةِ فَكُبَّتْ وُجُوهُهُمْ فِى ٱلنَّارِ هَلْ تُجْزَوْنَ إِلَّا مَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ

और जो लोग बुरा काम करेंगे वह मुँह के बल जहन्नुम में झोक दिए जाएँगे (और उनसे कहा जाएगा कि) जो कुछ तुम (दुनिया में) करते थे बस उसी का जज़ा तुम्हें दी जाएगी

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{91} إِنَّمَآ أُمِرْتُ أَنْ أَعْبُدَ رَبَّ هَـٰذِهِ ٱلْبَلْدَةِ ٱلَّذِى حَرَّمَهَا وَلَهُۥ كُلُّ شَىْءٍۢ ۖ وَأُمِرْتُ أَنْ أَكُونَ مِنَ ٱلْمُسْلِمِينَ

(ऐ रसूल उनसे कह दो कि) मुझे तो बस यही हुक्म दिया गया है कि मै इस शहर (मक्का) के मालिक की इबादत करुँ जिसने उसे इज्ज़त व हुरमत दी है और हर चीज़ उसकी है और मुझे ये हुक्म दिया गया कि मै (उसके) फरमाबरदार बन्दों में से हूँ

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{92} وَأَنْ أَتْلُوَا۟ ٱلْقُرْءَانَ ۖ فَمَنِ ٱهْتَدَىٰ فَإِنَّمَا يَهْتَدِى لِنَفْسِهِۦ ۖ وَمَن ضَلَّ فَقُلْ إِنَّمَآ أَنَا۠ مِنَ ٱلْمُنذِرِينَ

और ये कि मै क़ुरान पढ़ा करुँ फिर जो शख्स राह पर आया तो अपनी ज़ात के नफे क़े वास्ते राह पर आया और जो गुमराह हुआ तो तुम कह दो कि मै भी एक एक डराने वाला हूँ

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{93} وَقُلِ ٱلْحَمْدُ لِلَّهِ سَيُرِيكُمْ ءَايَـٰتِهِۦ فَتَعْرِفُونَهَا ۚ وَمَا رَبُّكَ بِغَـٰفِلٍ عَمَّا تَعْمَلُونَ

और तुम कह दो कि अल्हमदोलिल्लाह वह अनक़रीब तुम्हें (अपनी क़ुदरत की) निशानियाँ दिखा देगा तो तुम उन्हें पहचान लोगे और जो कुछ तुम करते हो तुम्हारा परवरदिगार उससे ग़ाफिल नहीं है

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