Details
Tbl_QuraanAyaat
- SuraArabic
- AyatNo
- 61
- PageNo
- 358
- SegmentNo
- 4
- AyatImagePath
- AyatAudioPath
- 24_61.png
- AyatText
- لَّيْسَ عَلَى ٱلْأَعْمَىٰ حَرَجٌۭ وَلَا عَلَى ٱلْأَعْرَجِ حَرَجٌۭ وَلَا عَلَى ٱلْمَرِيضِ حَرَجٌۭ وَلَا عَلَىٰٓ أَنفُسِكُمْ أَن تَأْكُلُوا۟ مِنۢ بُيُوتِكُمْ أَوْ بُيُوتِ ءَابَآئِكُمْ أَوْ بُيُوتِ أُمَّهَـٰتِكُمْ أَوْ بُيُوتِ إِخْوَٰنِكُمْ أَوْ بُيُوتِ أَخَوَٰتِكُمْ أَوْ بُيُوتِ أَعْمَـٰمِكُمْ أَوْ بُيُوتِ عَمَّـٰتِكُمْ أَوْ بُيُوتِ أَخْوَٰلِكُمْ أَوْ بُيُوتِ خَـٰلَـٰتِكُمْ أَوْ مَا مَلَكْتُم مَّفَاتِحَهُۥٓ أَوْ صَدِيقِكُمْ ۚ لَيْسَ عَلَيْكُمْ جُنَاحٌ أَن تَأْكُلُوا۟ جَمِيعًا أَوْ أَشْتَاتًۭا ۚ فَإِذَا دَخَلْتُم بُيُوتًۭا فَسَلِّمُوا۟ عَلَىٰٓ أَنفُسِكُمْ تَحِيَّةًۭ مِّنْ عِندِ ٱللَّهِ مُبَـٰرَكَةًۭ طَيِّبَةًۭ ۚ كَذَٰلِكَ يُبَيِّنُ ٱللَّهُ لَكُمُ ٱلْـَٔايَـٰتِ لَعَلَّكُمْ تَعْقِلُونَ
- AyatMeaning
- इस बात में न तो अंधे आदमी के लिए मज़ाएक़ा है और न लँगड़ें आदमी पर कुछ इल्ज़ाम है- और न बीमार पर कोई गुनाह है और न ख़ुद तुम लोगो पर कि अपने घरों से खाना खाओ या अपने बाप दादा नाना बग़ैरह के घरों से या अपनी माँ दादी नानी वगैरह के घरों से या अपने भाइयों के घरों से या अपनी बहनों के घरों से या अपने चचाओं के घरों से या अपनी फूफ़ियों के घरों से या अपने मामूओं के घरों से या अपनी खालाओं के घरों से या उस घर से जिसकी कुन्जियाँ तुम्हारे हाथ में है या अपने दोस्तों (के घरों) से इस में भी तुम पर कोई इल्ज़ाम नहीं कि सब के सब मिलकर खाओ या अलग अलग फिर जब तुम घर वालों में जाने लगो (और वहाँ किसी का न पाओ) तो ख़ुद अपने ही ऊपर सलाम कर लिया करो जो ख़ुदा की तरफ से एक मुबारक पाक व पाकीज़ा तोहफा है- ख़ुदा यूँ (अपने) एहकाम तुमसे साफ साफ बयान करता है ताकि तुम समझो
- Vocabulary
- AyatSummary
- Conclusions
- AyatPurpose
- AyatSimilar
- HadeethContext
- LangCode
- hi