Details

Tbl_QuraanAyaat


SuraArabic
AyatNo
122
PageNo
206
SegmentNo
4
AyatImagePath
AyatAudioPath
9_122.png
AyatText
۞ وَمَا كَانَ ٱلْمُؤْمِنُونَ لِيَنفِرُوا۟ كَآفَّةًۭ ۚ فَلَوْلَا نَفَرَ مِن كُلِّ فِرْقَةٍۢ مِّنْهُمْ طَآئِفَةٌۭ لِّيَتَفَقَّهُوا۟ فِى ٱلدِّينِ وَلِيُنذِرُوا۟ قَوْمَهُمْ إِذَا رَجَعُوٓا۟ إِلَيْهِمْ لَعَلَّهُمْ يَحْذَرُونَ
AyatMeaning
और ये भी मुनासिब नहीं कि मोमिननि कुल के कुल (अपने घरों में) निकल खड़े हों उनमें से हर गिरोह की एक जमाअत (अपने घरों से) क्यों नहीं निकलती ताकि इल्मे दीन हासिल करे और जब अपनी क़ौम की तरफ पलट के आवे तो उनको (अज्र व आख़िरत से) डराए ताकि ये लोग डरें
Vocabulary
AyatSummary
Conclusions
AyatPurpose
AyatSimilar
HadeethContext
LangCode
hi

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