Details

Tbl_QuraanAyaat


SuraArabic
AyatNo
36
PageNo
84
SegmentNo
4
AyatImagePath
AyatAudioPath
4_36.png
AyatText
۞ وَٱعْبُدُوا۟ ٱللَّهَ وَلَا تُشْرِكُوا۟ بِهِۦ شَيْـًۭٔا ۖ وَبِٱلْوَٰلِدَيْنِ إِحْسَـٰنًۭا وَبِذِى ٱلْقُرْبَىٰ وَٱلْيَتَـٰمَىٰ وَٱلْمَسَـٰكِينِ وَٱلْجَارِ ذِى ٱلْقُرْبَىٰ وَٱلْجَارِ ٱلْجُنُبِ وَٱلصَّاحِبِ بِٱلْجَنۢبِ وَٱبْنِ ٱلسَّبِيلِ وَمَا مَلَكَتْ أَيْمَـٰنُكُمْ ۗ إِنَّ ٱللَّهَ لَا يُحِبُّ مَن كَانَ مُخْتَالًۭا فَخُورًا
AyatMeaning
और ख़ुदा ही की इबादत करो और किसी को उसका शरीक न बनाओ और मॉ बाप और क़राबतदारों और यतीमों और मोहताजों और रिश्तेदार पड़ोसियों और अजनबी पड़ोसियों और पहलू में बैठने वाले मुसाहिबों और पड़ोसियों और ज़र ख़रीद लौन्डी और गुलाम के साथ एहसान करो बेशक ख़ुदा अकड़ के चलने वालों और शेख़ीबाज़ों को दोस्त नहीं रखता
Vocabulary
AyatSummary
Conclusions
AyatPurpose
AyatSimilar
HadeethContext
LangCode
hi

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