Details

Tbl_QuraanAyaat


SuraArabic
AyatNo
44
PageNo
481
SegmentNo
4
AyatImagePath
AyatAudioPath
41_44.png
AyatText
وَلَوْ جَعَلْنَـٰهُ قُرْءَانًا أَعْجَمِيًّۭا لَّقَالُوا۟ لَوْلَا فُصِّلَتْ ءَايَـٰتُهُۥٓ ۖ ءَا۬عْجَمِىٌّۭ وَعَرَبِىٌّۭ ۗ قُلْ هُوَ لِلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ هُدًۭى وَشِفَآءٌۭ ۖ وَٱلَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ فِىٓ ءَاذَانِهِمْ وَقْرٌۭ وَهُوَ عَلَيْهِمْ عَمًى ۚ أُو۟لَـٰٓئِكَ يُنَادَوْنَ مِن مَّكَانٍۭ بَعِيدٍۢ
AyatMeaning
और अगर हम इस क़ुरान को अरबी ज़बान के सिवा दूसरी ज़बान में नाज़िल करते तो ये लोग ज़रूर कह न बैठते कि इसकी आयतें (हमारी) ज़बान में क्यों तफ़सीलदार बयान नहीं की गयी क्या (खूब क़ुरान तो) अजमी और (मुख़ातिब) अरबी (ऐ रसूल) तुम कह दो कि ईमानदारों के लिए तो ये (कुरान अज़सरतापा) हिदायत और (हर मर्ज़ की) शिफ़ा है और जो लोग ईमान नहीं रखते उनके कानों (के हक़) में गिरानी (बहरापन) है और वह (कुरान) उनके हक़ में नाबीनाई (का सबब) है तो गिरानी की वजह से गोया वह लोग बड़ी दूर की जगह से पुकारे जाते है
Vocabulary
AyatSummary
Conclusions
AyatPurpose
AyatSimilar
HadeethContext
LangCode
hi

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