Details
Tbl_QuraanAyaat
- SuraArabic
- AyatNo
- 15
- PageNo
- 210
- SegmentNo
- 4
- AyatImagePath
- AyatAudioPath
- 10_15.png
- AyatText
- وَإِذَا تُتْلَىٰ عَلَيْهِمْ ءَايَاتُنَا بَيِّنَـٰتٍۢ ۙ قَالَ ٱلَّذِينَ لَا يَرْجُونَ لِقَآءَنَا ٱئْتِ بِقُرْءَانٍ غَيْرِ هَـٰذَآ أَوْ بَدِّلْهُ ۚ قُلْ مَا يَكُونُ لِىٓ أَنْ أُبَدِّلَهُۥ مِن تِلْقَآئِ نَفْسِىٓ ۖ إِنْ أَتَّبِعُ إِلَّا مَا يُوحَىٰٓ إِلَىَّ ۖ إِنِّىٓ أَخَافُ إِنْ عَصَيْتُ رَبِّى عَذَابَ يَوْمٍ عَظِيمٍۢ
- AyatMeaning
- और जब उन लोगों के सामने हमारी रौशन आयते पढ़ीं जाती हैं तो जिन लोगों को (मरने के बाद) हमारी हुजूरी का खटका नहीं है वह कहते है कि हमारे सामने इसके अलावा कोई दूसरा (कुरान लाओ या उसका रद्दो बदल कर डालो (ऐ रसूल तुम कह दो कि मुझे ये एख्तेयार नहीं कि मै उसे अपने जी से बदल डालूँ मै तो बस उसी का पाबन्द हूँ जो मेरी तरफ वही की गई है मै तो अगर अपने परवरदिगार की नाफरमानी करु तो बड़े (कठिन) दिन के अज़ाब से डरता हूँ
- Vocabulary
- AyatSummary
- Conclusions
- AyatPurpose
- AyatSimilar
- HadeethContext
- LangCode
- hi