Details
Tbl_QuraanAyaat
- SuraArabic
- AyatNo
- 141
- PageNo
- 146
- SegmentNo
- 4
- AyatImagePath
- AyatAudioPath
- 6_141.png
- AyatText
- ۞ وَهُوَ ٱلَّذِىٓ أَنشَأَ جَنَّـٰتٍۢ مَّعْرُوشَـٰتٍۢ وَغَيْرَ مَعْرُوشَـٰتٍۢ وَٱلنَّخْلَ وَٱلزَّرْعَ مُخْتَلِفًا أُكُلُهُۥ وَٱلزَّيْتُونَ وَٱلرُّمَّانَ مُتَشَـٰبِهًۭا وَغَيْرَ مُتَشَـٰبِهٍۢ ۚ كُلُوا۟ مِن ثَمَرِهِۦٓ إِذَآ أَثْمَرَ وَءَاتُوا۟ حَقَّهُۥ يَوْمَ حَصَادِهِۦ ۖ وَلَا تُسْرِفُوٓا۟ ۚ إِنَّهُۥ لَا يُحِبُّ ٱلْمُسْرِفِينَ
- AyatMeaning
- और वह तो वही ख़ुदा है जिसने बहुतेरे बाग़ पैदा किए (जिनमें मुख्तलिफ दरख्त हैं - कुछ तो अंगूर की तरह टट्टियों पर) चढ़ाए हुए और (कुछ) बे चढ़ाए हुए और खजूर के दरख्त और खेती जिसमें फल मुख्तलिफ़ किस्म के हैं और ज़ैतून और अनार बाज़ तो सूरत रंग मज़े में, मिलते जुलते और (बाज़) बेमेल (लोगों) जब ये चीज़े फलें तो उनका फल खाओ और उन चीज़ों के काटने के दिन ख़ुदा का हक़ (ज़कात) दे दो और ख़बरदार फज़ूल ख़र्ची न करो - क्यों कि वह (ख़ुदा) फुज़ूल ख़र्चे से हरगिज़ उलफत नहीं रखता
- Vocabulary
- AyatSummary
- Conclusions
- AyatPurpose
- AyatSimilar
- HadeethContext
- LangCode
- hi