Tafseer Translation

{1} بِسْمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحْمَـٰنِ ٱلرَّحِيمِ سَبَّحَ لِلَّهِ مَا فِى ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ ۖ وَهُوَ ٱلْعَزِيزُ ٱلْحَكِيمُ

जो जो चीज़ सारे आसमान व ज़मीन में है सब ख़ुदा की तसबीह करती है और वही ग़ालिब हिकमत वाला है

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{2} لَهُۥ مُلْكُ ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ ۖ يُحْىِۦ وَيُمِيتُ ۖ وَهُوَ عَلَىٰ كُلِّ شَىْءٍۢ قَدِيرٌ

सारे आसमान व ज़मीन की बादशाही उसी की है वही जिलाता है वही मारता है और वही हर चीज़ पर कादिर है

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{3} هُوَ ٱلْأَوَّلُ وَٱلْـَٔاخِرُ وَٱلظَّـٰهِرُ وَٱلْبَاطِنُ ۖ وَهُوَ بِكُلِّ شَىْءٍ عَلِيمٌ

वही सबसे पहले और सबसे आख़िर है और (अपनी क़ूवतों से) सब पर ज़ाहिर और (निगाहों से) पोशीदा है और वही सब चीज़ों को जानता

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{4} هُوَ ٱلَّذِى خَلَقَ ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضَ فِى سِتَّةِ أَيَّامٍۢ ثُمَّ ٱسْتَوَىٰ عَلَى ٱلْعَرْشِ ۚ يَعْلَمُ مَا يَلِجُ فِى ٱلْأَرْضِ وَمَا يَخْرُجُ مِنْهَا وَمَا يَنزِلُ مِنَ ٱلسَّمَآءِ وَمَا يَعْرُجُ فِيهَا ۖ وَهُوَ مَعَكُمْ أَيْنَ مَا كُنتُمْ ۚ وَٱللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرٌۭ

वह वही तो है जिसने सारे आसमान व ज़मीन को छह: दिन में पैदा किए फिर अर्श (के बनाने) पर आमादा हुआ जो चीज़ ज़मीन में दाखिल होती है और जो उससे निकलती है और जो चीज़ आसमान से नाज़िल होती है और जो उसकी तरफ चढ़ती है (सब) उसको मालूम है और तुम (चाहे) जहाँ कहीं रहो वह तुम्हारे साथ है और जो कुछ भी तुम करते हो ख़ुदा उसे देख रहा है

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{5} لَّهُۥ مُلْكُ ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ ۚ وَإِلَى ٱللَّهِ تُرْجَعُ ٱلْأُمُورُ

सारे आसमान व ज़मीन की बादशाही ख़ास उसी की है और ख़ुदा ही की तरफ कुल उमूर की रूजू होती है

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{6} يُولِجُ ٱلَّيْلَ فِى ٱلنَّهَارِ وَيُولِجُ ٱلنَّهَارَ فِى ٱلَّيْلِ ۚ وَهُوَ عَلِيمٌۢ بِذَاتِ ٱلصُّدُورِ

वही रात को (घटा कर) दिन में दाखिल करता है तो दिन बढ़ जाता है और दिन को (घटाकर) रात में दाख़िल करता है (तो रात बढ़ जाती है) और दिलों के भेदों तक से ख़ूब वाक़िफ है

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{7} ءَامِنُوا۟ بِٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦ وَأَنفِقُوا۟ مِمَّا جَعَلَكُم مُّسْتَخْلَفِينَ فِيهِ ۖ فَٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ مِنكُمْ وَأَنفَقُوا۟ لَهُمْ أَجْرٌۭ كَبِيرٌۭ

(लोगों) ख़ुदा और उसके रसूल पर ईमान लाओ और जिस (माल) में उसने तुमको अपना नायब बनाया है उसमें से से कुछ (ख़ुदा की राह में) ख़र्च करो तो तुम में से जो लोग ईमान लाए और (राहे ख़ुदा में) ख़र्च करते रहें उनके लिए बड़ा अज्र है

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{8} وَمَا لَكُمْ لَا تُؤْمِنُونَ بِٱللَّهِ ۙ وَٱلرَّسُولُ يَدْعُوكُمْ لِتُؤْمِنُوا۟ بِرَبِّكُمْ وَقَدْ أَخَذَ مِيثَـٰقَكُمْ إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ

और तुम्हें क्या हो गया है कि ख़ुदा पर ईमान नहीं लाते हो हालॉकि रसूल तुम्हें बुला रहें हैं कि अपने परवरदिगार पर ईमान लाओ और अगर तुमको बावर हो तो (यक़ीन करो कि) ख़ुदा तुम से (इसका) इक़रार ले चुका

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{9} هُوَ ٱلَّذِى يُنَزِّلُ عَلَىٰ عَبْدِهِۦٓ ءَايَـٰتٍۭ بَيِّنَـٰتٍۢ لِّيُخْرِجَكُم مِّنَ ٱلظُّلُمَـٰتِ إِلَى ٱلنُّورِ ۚ وَإِنَّ ٱللَّهَ بِكُمْ لَرَءُوفٌۭ رَّحِيمٌۭ

वही तो है जो अपने बन्दे (मोहम्मद) पर वाज़ेए व रौशन आयतें नाज़िल करता है ताकि तुम लोगों को (कुफ़्र की) तारिक़ीयों से निकाल कर (ईमान की) रौशनी में ले जाए और बेशक ख़ुदा तुम पर बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है

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{10} وَمَا لَكُمْ أَلَّا تُنفِقُوا۟ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ وَلِلَّهِ مِيرَٰثُ ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ ۚ لَا يَسْتَوِى مِنكُم مَّنْ أَنفَقَ مِن قَبْلِ ٱلْفَتْحِ وَقَـٰتَلَ ۚ أُو۟لَـٰٓئِكَ أَعْظَمُ دَرَجَةًۭ مِّنَ ٱلَّذِينَ أَنفَقُوا۟ مِنۢ بَعْدُ وَقَـٰتَلُوا۟ ۚ وَكُلًّۭا وَعَدَ ٱللَّهُ ٱلْحُسْنَىٰ ۚ وَٱللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ خَبِيرٌۭ

और तुमको क्या हो गया कि (अपना माल) ख़ुदा की राह में ख़र्च नहीं करते हालॉकि सारे आसमान व ज़मीन का मालिक व वारिस ख़ुदा ही है तुममें से जिस शख़्श ने फतेह (मक्का) से पहले (अपना माल) ख़र्च किया और जेहाद किया (और जिसने बाद में किया) वह बराबर नहीं उनका दर्जा उन लोगों से कहीं बढ़ कर है जिन्होंने बाद में ख़र्च किया और जेहाद किया और (यूँ तो) ख़ुदा ने नेकी और सवाब का वायदा तो सबसे किया है और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा उससे ख़ूब वाक़िफ़ है

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{11} مَّن ذَا ٱلَّذِى يُقْرِضُ ٱللَّهَ قَرْضًا حَسَنًۭا فَيُضَـٰعِفَهُۥ لَهُۥ وَلَهُۥٓ أَجْرٌۭ كَرِيمٌۭ

कौन ऐसा है जो ख़ुदा को ख़ालिस नियत से कर्जे हसना दे तो ख़ुदा उसके लिए (अज्र को) दूना कर दे और उसके लिए बहुत मुअज्ज़िज़ सिला (जन्नत) तो है ही

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{12} يَوْمَ تَرَى ٱلْمُؤْمِنِينَ وَٱلْمُؤْمِنَـٰتِ يَسْعَىٰ نُورُهُم بَيْنَ أَيْدِيهِمْ وَبِأَيْمَـٰنِهِم بُشْرَىٰكُمُ ٱلْيَوْمَ جَنَّـٰتٌۭ تَجْرِى مِن تَحْتِهَا ٱلْأَنْهَـٰرُ خَـٰلِدِينَ فِيهَا ۚ ذَٰلِكَ هُوَ ٱلْفَوْزُ ٱلْعَظِيمُ

जिस दिन तुम मोमिन मर्द और मोमिन औरतों को देखोगे कि उन (के ईमान) का नूर उनके आगे आगे और दाहिने तरफ चल रहा होगा तो उनसे कहा (जाएगा) तुमको बशारत हो कि आज तुम्हारे लिए वह बाग़ है जिनके नीचे नहरें जारी हैं जिनमें हमेशा रहोगे यही तो बड़ी कामयाबी है

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{13} يَوْمَ يَقُولُ ٱلْمُنَـٰفِقُونَ وَٱلْمُنَـٰفِقَـٰتُ لِلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ ٱنظُرُونَا نَقْتَبِسْ مِن نُّورِكُمْ قِيلَ ٱرْجِعُوا۟ وَرَآءَكُمْ فَٱلْتَمِسُوا۟ نُورًۭا فَضُرِبَ بَيْنَهُم بِسُورٍۢ لَّهُۥ بَابٌۢ بَاطِنُهُۥ فِيهِ ٱلرَّحْمَةُ وَظَـٰهِرُهُۥ مِن قِبَلِهِ ٱلْعَذَابُ

उस दिन मुनाफ़िक मर्द और मुनाफ़िक औरतें ईमानदारों से कहेंगे एक नज़र (शफ़क्क़त) हमारी तरफ़ भी करो कि हम भी तुम्हारे नूर से कुछ रौशनी हासिल करें तो (उनसे) कहा जाएगा कि तुम अपने पीछे (दुनिया में) लौट जाओ और (वही) किसी और नूर की तलाश करो फिर उनके बीच में एक दीवार खड़ी कर दी जाएगी जिसमें एक दरवाज़ा होगा (और) उसके अन्दर की जानिब तो रहमत है और बाहर की तरफ अज़ाब तो मुनाफ़िक़ीन मोमिनीन से पुकार कर कहेंगे

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{14} يُنَادُونَهُمْ أَلَمْ نَكُن مَّعَكُمْ ۖ قَالُوا۟ بَلَىٰ وَلَـٰكِنَّكُمْ فَتَنتُمْ أَنفُسَكُمْ وَتَرَبَّصْتُمْ وَٱرْتَبْتُمْ وَغَرَّتْكُمُ ٱلْأَمَانِىُّ حَتَّىٰ جَآءَ أَمْرُ ٱللَّهِ وَغَرَّكُم بِٱللَّهِ ٱلْغَرُورُ

(क्यों भाई) क्या हम कभी तुम्हारे साथ न थे तो मोमिनीन कहेंगे थे तो ज़रूर मगर तुम ने तो ख़ुद अपने आपको बला में डाला और (हमारे हक़ में गर्दिशों के) मुन्तज़िर हैं और (दीन में) शक़ किया किए और तुम्हें (तुम्हारी) तमन्नाओं ने धोखे में रखा यहाँ तक कि ख़ुदा का हुक्म आ पहुँचा और एक बड़े दग़ाबाज़ (शैतान) ने ख़ुदा के बारे में तुमको फ़रेब दिया

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{15} فَٱلْيَوْمَ لَا يُؤْخَذُ مِنكُمْ فِدْيَةٌۭ وَلَا مِنَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ ۚ مَأْوَىٰكُمُ ٱلنَّارُ ۖ هِىَ مَوْلَىٰكُمْ ۖ وَبِئْسَ ٱلْمَصِيرُ

तो आज न तो तुमसे कोई मुआवज़ा लिया जाएगा और न काफ़िरों से तुम सबका ठिकाना (बस) जहन्नुम है वही तुम्हारे वास्ते सज़ावार है और (क्या) बुरी जगह है

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{16} ۞ أَلَمْ يَأْنِ لِلَّذِينَ ءَامَنُوٓا۟ أَن تَخْشَعَ قُلُوبُهُمْ لِذِكْرِ ٱللَّهِ وَمَا نَزَلَ مِنَ ٱلْحَقِّ وَلَا يَكُونُوا۟ كَٱلَّذِينَ أُوتُوا۟ ٱلْكِتَـٰبَ مِن قَبْلُ فَطَالَ عَلَيْهِمُ ٱلْأَمَدُ فَقَسَتْ قُلُوبُهُمْ ۖ وَكَثِيرٌۭ مِّنْهُمْ فَـٰسِقُونَ

क्या ईमानदारों के लिए अभी तक इसका वक्त नहीं आया कि ख़ुदा की याद और क़ुरान के लिए जो (ख़ुदा की तरफ से) नाज़िल हुआ है उनके दिल नरम हों और वह उन लोगों के से न हो जाएँ जिनको उन से पहले किताब (तौरेत, इन्जील) दी गयी थी तो (जब) एक ज़माना दराज़ गुज़र गया तो उनके दिल सख्त हो गए और इनमें से बहुतेरे बदकार हैं

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{17} ٱعْلَمُوٓا۟ أَنَّ ٱللَّهَ يُحْىِ ٱلْأَرْضَ بَعْدَ مَوْتِهَا ۚ قَدْ بَيَّنَّا لَكُمُ ٱلْـَٔايَـٰتِ لَعَلَّكُمْ تَعْقِلُونَ

जान रखो कि ख़ुदा ही ज़मीन को उसके मरने (उफ़तादा होने) के बाद ज़िन्दा (आबाद) करता है हमने तुमसे अपनी (क़ुदरत की) निशानियाँ खोल खोल कर बयान कर दी हैं ताकि तुम समझो

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{18} إِنَّ ٱلْمُصَّدِّقِينَ وَٱلْمُصَّدِّقَـٰتِ وَأَقْرَضُوا۟ ٱللَّهَ قَرْضًا حَسَنًۭا يُضَـٰعَفُ لَهُمْ وَلَهُمْ أَجْرٌۭ كَرِيمٌۭ

बेशक ख़ैरात देने वाले मर्द और ख़ैरात देने वाली औरतें और (जो लोग) ख़ुदा की नीयत से ख़ालिस कर्ज़ देते हैं उनको दोगुना (अज्र) दिया जाएगा और उनका बहुत मुअज़िज़ सिला (जन्नत) तो है ही

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{19} وَٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ بِٱللَّهِ وَرُسُلِهِۦٓ أُو۟لَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلصِّدِّيقُونَ ۖ وَٱلشُّهَدَآءُ عِندَ رَبِّهِمْ لَهُمْ أَجْرُهُمْ وَنُورُهُمْ ۖ وَٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ وَكَذَّبُوا۟ بِـَٔايَـٰتِنَآ أُو۟لَـٰٓئِكَ أَصْحَـٰبُ ٱلْجَحِيمِ

और जो लोग ख़ुदा और उसके रसूलों पर ईमान लाए यही लोग अपने परवरदिगार के नज़दीक सिद्दीक़ों और शहीदों के दरजे में होंगे उनके लिए उन्ही (सिद्दीकों और शहीदों) का अज्र और उन्हीं का नूर होगा और जिन लोगों ने कुफ्र किया और हमारी आयतों को झुठलाया वही लोग जहन्नुमी हैं

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{20} ٱعْلَمُوٓا۟ أَنَّمَا ٱلْحَيَوٰةُ ٱلدُّنْيَا لَعِبٌۭ وَلَهْوٌۭ وَزِينَةٌۭ وَتَفَاخُرٌۢ بَيْنَكُمْ وَتَكَاثُرٌۭ فِى ٱلْأَمْوَٰلِ وَٱلْأَوْلَـٰدِ ۖ كَمَثَلِ غَيْثٍ أَعْجَبَ ٱلْكُفَّارَ نَبَاتُهُۥ ثُمَّ يَهِيجُ فَتَرَىٰهُ مُصْفَرًّۭا ثُمَّ يَكُونُ حُطَـٰمًۭا ۖ وَفِى ٱلْـَٔاخِرَةِ عَذَابٌۭ شَدِيدٌۭ وَمَغْفِرَةٌۭ مِّنَ ٱللَّهِ وَرِضْوَٰنٌۭ ۚ وَمَا ٱلْحَيَوٰةُ ٱلدُّنْيَآ إِلَّا مَتَـٰعُ ٱلْغُرُورِ

जान रखो कि दुनियावी ज़िन्दगी महज़ खेल और तमाशा और ज़ाहिरी ज़ीनत (व आसाइश) और आपस में एक दूसरे पर फ़ख्र क़रना और माल और औलाद की एक दूसरे से ज्यादा ख्वाहिश है (दुनयावी ज़िन्दगी की मिसाल तो) बारिश की सी मिसाल है जिस (की वजह) से किसानों की खेती (लहलहाती और) उनको ख़ुश कर देती थी फिर सूख जाती है तो तू उसको देखता है कि ज़र्द हो जाती है फिर चूर चूर हो जाती है और आख़िरत में (कुफ्फार के लिए) सख्त अज़ाब है और (मोमिनों के लिए) ख़ुदा की तरफ से बख़्शिस और ख़ुशनूदी और दुनयावी ज़िन्दगी तो बस फ़रेब का साज़ो सामान है

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{21} سَابِقُوٓا۟ إِلَىٰ مَغْفِرَةٍۢ مِّن رَّبِّكُمْ وَجَنَّةٍ عَرْضُهَا كَعَرْضِ ٱلسَّمَآءِ وَٱلْأَرْضِ أُعِدَّتْ لِلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ بِٱللَّهِ وَرُسُلِهِۦ ۚ ذَٰلِكَ فَضْلُ ٱللَّهِ يُؤْتِيهِ مَن يَشَآءُ ۚ وَٱللَّهُ ذُو ٱلْفَضْلِ ٱلْعَظِيمِ

तुम अपने परवरदिगार के (सबब) बख़्शिस की और बेहिश्त की तरफ लपक के आगे बढ़ जाओ जिसका अर्ज़ आसमान और ज़मीन के अर्ज़ के बराबर है जो उन लोगों के लिए तैयार की गयी है जो ख़ुदा पर और उसके रसूलों पर ईमान लाए हैं ये ख़ुदा का फज़ल है जिसे चाहे अता करे और ख़ुदा का फज़ल (व क़रम) तो बहुत बड़ा है

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{22} مَآ أَصَابَ مِن مُّصِيبَةٍۢ فِى ٱلْأَرْضِ وَلَا فِىٓ أَنفُسِكُمْ إِلَّا فِى كِتَـٰبٍۢ مِّن قَبْلِ أَن نَّبْرَأَهَآ ۚ إِنَّ ذَٰلِكَ عَلَى ٱللَّهِ يَسِيرٌۭ

जितनी मुसीबतें रूए ज़मीन पर और ख़ुद तुम लोगों पर नाज़िल होती हैं (वह सब) क़ब्ल इसके कि हम उन्हें पैदा करें किताब (लौह महफूज़) में (लिखी हुई) हैं बेशक ये ख़ुदा पर आसान है

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{23} لِّكَيْلَا تَأْسَوْا۟ عَلَىٰ مَا فَاتَكُمْ وَلَا تَفْرَحُوا۟ بِمَآ ءَاتَىٰكُمْ ۗ وَٱللَّهُ لَا يُحِبُّ كُلَّ مُخْتَالٍۢ فَخُورٍ

ताकि जब कोई चीज़ तुमसे जाती रहे तो तुम उसका रंज न किया करो और जब कोई चीज़ (नेअमत) ख़ुदा तुमको दे तो उस पर न इतराया करो और ख़ुदा किसी इतराने वाले येख़ी बाज़ को दोस्त नहीं रखता

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{24} ٱلَّذِينَ يَبْخَلُونَ وَيَأْمُرُونَ ٱلنَّاسَ بِٱلْبُخْلِ ۗ وَمَن يَتَوَلَّ فَإِنَّ ٱللَّهَ هُوَ ٱلْغَنِىُّ ٱلْحَمِيدُ

जो ख़ुद भी बुख्ल करते हैं और दूसरे लोगों को भी बुख्ल करना सिखाते हैं और जो शख़्श (इन बातों से) रूगरदानी करे तो ख़ुदा भी बेपरवा सज़ावारे हम्दोसना है

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{25} لَقَدْ أَرْسَلْنَا رُسُلَنَا بِٱلْبَيِّنَـٰتِ وَأَنزَلْنَا مَعَهُمُ ٱلْكِتَـٰبَ وَٱلْمِيزَانَ لِيَقُومَ ٱلنَّاسُ بِٱلْقِسْطِ ۖ وَأَنزَلْنَا ٱلْحَدِيدَ فِيهِ بَأْسٌۭ شَدِيدٌۭ وَمَنَـٰفِعُ لِلنَّاسِ وَلِيَعْلَمَ ٱللَّهُ مَن يَنصُرُهُۥ وَرُسُلَهُۥ بِٱلْغَيْبِ ۚ إِنَّ ٱللَّهَ قَوِىٌّ عَزِيزٌۭ

हमने यक़ीनन अपने पैग़म्बरों को वाज़े व रौशन मोजिज़े देकर भेजा और उनके साथ किताब और (इन्साफ़ की) तराज़ू नाज़िल किया ताकि लोग इन्साफ़ पर क़ायम रहे और हम ही ने लोहे को नाज़िल किया जिसके ज़रिए से सख्त लड़ाई और लोगों के बहुत से नफे (की बातें) हैं और ताकि ख़ुदा देख ले कि बेदेखे भाले ख़ुदा और उसके रसूलों की कौन मदद करता है बेशक ख़ुदा बहुत ज़बरदस्त ग़ालिब है

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{26} وَلَقَدْ أَرْسَلْنَا نُوحًۭا وَإِبْرَٰهِيمَ وَجَعَلْنَا فِى ذُرِّيَّتِهِمَا ٱلنُّبُوَّةَ وَٱلْكِتَـٰبَ ۖ فَمِنْهُم مُّهْتَدٍۢ ۖ وَكَثِيرٌۭ مِّنْهُمْ فَـٰسِقُونَ

और बेशक हम ही ने नूह और इबराहीम को (पैग़म्बर बनाकर) भेजा और उनही दोनों की औलाद में नबूवत और किताब मुक़र्रर की तो उनमें के बाज़ हिदायत याफ्ता हैं और उन के बहुतेरे बदकार हैं

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{27} ثُمَّ قَفَّيْنَا عَلَىٰٓ ءَاثَـٰرِهِم بِرُسُلِنَا وَقَفَّيْنَا بِعِيسَى ٱبْنِ مَرْيَمَ وَءَاتَيْنَـٰهُ ٱلْإِنجِيلَ وَجَعَلْنَا فِى قُلُوبِ ٱلَّذِينَ ٱتَّبَعُوهُ رَأْفَةًۭ وَرَحْمَةًۭ وَرَهْبَانِيَّةً ٱبْتَدَعُوهَا مَا كَتَبْنَـٰهَا عَلَيْهِمْ إِلَّا ٱبْتِغَآءَ رِضْوَٰنِ ٱللَّهِ فَمَا رَعَوْهَا حَقَّ رِعَايَتِهَا ۖ فَـَٔاتَيْنَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ مِنْهُمْ أَجْرَهُمْ ۖ وَكَثِيرٌۭ مِّنْهُمْ فَـٰسِقُونَ

फिर उनके पीछे ही उनके क़दम ब क़दम अपने और पैग़म्बर भेजे और उनके पीछे मरियम के बेटे ईसा को भेजा और उनको इन्जील अता की और जिन लोगों ने उनकी पैरवी की उनके दिलों में यफ़क्क़त और मेहरबानी डाल दी और रहबानियत (लज्ज़ात से किनाराकशी) उन लोगों ने ख़ुद एक नयी बात निकाली थी हमने उनको उसका हुक्म नहीं दिया था मगर (उन लोगों ने) ख़ुदा की ख़ुशनूदी हासिल करने की ग़रज़ से (ख़ुद ईजाद किया) तो उसको भी जैसा बनाना चाहिए था न बना सके तो जो लोग उनमें से ईमान लाए उनको हमने उनका अज्र दिया उनमें के बहुतेरे तो बदकार ही हैं

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{28} يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ ٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ وَءَامِنُوا۟ بِرَسُولِهِۦ يُؤْتِكُمْ كِفْلَيْنِ مِن رَّحْمَتِهِۦ وَيَجْعَل لَّكُمْ نُورًۭا تَمْشُونَ بِهِۦ وَيَغْفِرْ لَكُمْ ۚ وَٱللَّهُ غَفُورٌۭ رَّحِيمٌۭ

ऐ ईमानदारों ख़ुदा से डरो और उसके रसूल (मोहम्मद) पर ईमान लाओ तो ख़ुदा तुमको अपनी रहमत के दो हिस्से अज्र अता फरमाएगा और तुमको ऐसा नूर इनायत फ़रमाएगा जिस (की रौशनी) में तुम चलोगे और तुमको बख्श भी देगा और ख़ुदा तो बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है

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{29} لِّئَلَّا يَعْلَمَ أَهْلُ ٱلْكِتَـٰبِ أَلَّا يَقْدِرُونَ عَلَىٰ شَىْءٍۢ مِّن فَضْلِ ٱللَّهِ ۙ وَأَنَّ ٱلْفَضْلَ بِيَدِ ٱللَّهِ يُؤْتِيهِ مَن يَشَآءُ ۚ وَٱللَّهُ ذُو ٱلْفَضْلِ ٱلْعَظِيمِ

(ये इसलिए कहा जाता है) ताकि अहले किताब ये न समझें कि ये मोमिनीन ख़ुदा के फज़ल (व क़रम) पर कुछ भी कुदरत नहीं रखते और ये तो यक़ीनी बात है कि फज़ल ख़ुदा ही के कब्ज़े में है वह जिसको चाहे अता फरमाए और ख़ुदा तो बड़े फज़ल (व क़रम) का मालिक है

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