Details
Tbl_QuraanAyaat
- SuraArabic
- AyatNo
- 184
- PageNo
- 28
- SegmentNo
- 4
- AyatImagePath
- AyatAudioPath
- 2_184.png
- AyatText
- أَيَّامًۭا مَّعْدُودَٰتٍۢ ۚ فَمَن كَانَ مِنكُم مَّرِيضًا أَوْ عَلَىٰ سَفَرٍۢ فَعِدَّةٌۭ مِّنْ أَيَّامٍ أُخَرَ ۚ وَعَلَى ٱلَّذِينَ يُطِيقُونَهُۥ فِدْيَةٌۭ طَعَامُ مِسْكِينٍۢ ۖ فَمَن تَطَوَّعَ خَيْرًۭا فَهُوَ خَيْرٌۭ لَّهُۥ ۚ وَأَن تَصُومُوا۟ خَيْرٌۭ لَّكُمْ ۖ إِن كُنتُمْ تَعْلَمُونَ
- AyatMeaning
- (वह भी हमेशा नहीं बल्कि) गिनती के चन्द रोज़ इस पर भी (रोज़े के दिनों में) जो शख्स तुम में से बीमार हो या सफर में हो तो और दिनों में जितने क़ज़ा हुए हो) गिन के रख ले और जिन्हें रोज़ा रखने की कूवत है और न रखें तो उन पर उस का बदला एक मोहताज को खाना खिला देना है और जो शख्स अपनी ख़ुशी से भलाई करे तो ये उस के लिए ज्यादा बेहतर है और अगर तुम समझदार हो तो (समझ लो कि फिदये से) रोज़ा रखना तुम्हारे हक़ में बहरहाल अच्छा है
- Vocabulary
- AyatSummary
- Conclusions
- AyatPurpose
- AyatSimilar
- HadeethContext
- LangCode
- hi